पिचाश मोचन श्राद्ध 15 दिसंबर महात्म्य एवं विधि

🌞🚩पिचाश मोचन श्राद्ध 15 दिसंबर महात्म्य एवं विधि
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🌞🚩जिन लोगों के पूर्वजों की मौत किसी आकस्मिक दुर्घटना या गैर-प्राकृतिक तरीके से हुई हो, उन्हें पिशाचमोचन श्राद्ध पर अपने पूर्वजों की आत्मी की शांति के लिए अवश्य ही प्रयास करना चाहिए।
हिन्दू धर्म में व्यक्ति के जन्म के बाद उसके मृत्यु को जीवन का एक चरण बताया गया है। वहीं हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद दाह संस्कार और श्राद्ध को भी महत्वपूर्ण बताया जाता है। लोग पितृ पक्ष में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं। माना जाता है कि मृत्यु के बाद लोगों का श्राद्ध करना जरूरी होता है।
मार्गशीर्ष महीने में पड़ने वाली पिशाच मोचन श्राद्ध पर भी लोग अपने पितरों का पिंडदान करते हैं। कहते हैं कि जिन लोगों की मृत्यु अकाल होती है उनका श्राद्ध पिशाचमोचन श्राद्ध वाले दिन करने से उन्हें मुक्ति मिलती है। इस साल पिशाचमोचन श्राद्ध 15 दिसंबर को पड़ रहा है।
🦚👉पिशाच मोचन श्राद्ध महत्व पितृ पक्ष:
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भटकती आत्माओं की मुक्ति का द्वार खोलता है काशी का यह कुंड
मोक्ष नगरी नगरी काशी में हर कुंड का अपना इतिहास और महत्व है। इन्हीं में से एक चेतगंज थाने के पास कुंड पिशाच मोचन भी है। इस कुंड की महत्ता तो वैसे हमेशा रहती है लेकिन पितृपक्ष में इसका महत्व और बढ़ जाता है। भारत में सिर्फ पिशाच मोचन कुंड पर ही त्रिपिंडी श्राद्ध होता है।
मंगलवार से पितृ पक्ष शुरू हो चुका है। मान्यता के अनुसार तो काशी में जिसकी भी मौत होती हो उसे मोक्ष मिल जाता है, लेकिन इस कुंड पर अकाल मौत या अन्य अन्य किसी वजह से भटकती आत्माओं को मोक्ष मिलता है। यही वजह है कि यहां देश भर से लोग आते हैं और तर्पण करते हैं।
भारत में सिर्फ पिशाच मोचन कुंड पर ही त्रिपिंडी श्राद्ध होता है, जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु की बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। इस कुंड का बखान गरुड़ पुराण में भी किया गया है। काशी खंड की मान्यता के अनुसार पिशाच मोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से है।
मान्यता के अनुसार यहां स्थित पीपल के वृक्ष पर भटकती आत्माओं को बैठाया जाता है। इस दौरान पेड़ पर सिक्का रखवाया जाता है ताकि पितरों का सभी उधार चुकता हो जाए और पितर सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें और यजमान भी पितृ ऋण से मुक्ति पा सके।
पितृपक्ष की प्रतिपदा यानी मंगलवार को बड़े पैमाने पर तर्पण किया जाएगा। इसके लिए पिशाच मोचन और गंगा के घाटों पर भोर से ही पिंडदान करने वालों की भीड़ जुट जाएगी। वहीं जो लोग गया श्राद्ध करने जाते हैं वह भी काशी में पिंडदान करते हैं। पिंडदान करने का सिलसिला तो सोमवार से ही शुरू हो गया है।
इस दिन शांति के उपाय करने से प्रेत योनि व जिन्हें भूत-प्रेत से भय व्याप्त हो उन्हें पितर दोष से मुक्ति मिलती है. इस दोष की शांति हेतु शास्त्रों में पिशाचमोचन श्राद्ध को महत्वपुर्ण माना गया है. मार्गशीर्ष माह में आने वाला पिशाच मोचन श्राद्ध काफी महत्वपूर्ण होता है. श्राद्ध के अनेक विधि-विधान बताए गए हैं जिनके द्वारा इनकी शांति व मुक्त्ति संभव होती है।
🦚👉पिशाच मोचन श्राद्ध महत्व
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पिशाच मोचन श्राद्ध कर्म द्वारा व्यक्ति अपने पितरों को शांति प्रदान करता है तथा उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति दिलाता है. धार्मिक मान्यताओं अनुसार यदि व्यक्ति अपने पितरों की मुक्ति एवं शांति हेतु यदि श्राद्ध कर्म एवं तर्पण न करे तो उसे पितृदोष भुगतना पड़ता है और उसके जीवन में अनेक कष्ट उत्पन्न होने लगते हैं. जो अकाल मृत्यु व किसी दुर्घटना में मारे जाते हैं उनके लिए यह श्राद्ध महत्वपूर्ण माना जाता है. इस प्रकार इस दिन श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हुए जीव मुक्ति पाता है।
यह समय पितरों को अभीष्ट सिद्धि देने वाला होता है. इसलिए इस दिन में किया गया श्राद्ध अक्षय होता है और पितर इससे संतुष्ट होते हैं. इस तिथि को करने से वे प्रसन्न होते हैं सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं तथा पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से छुटकारा मिलता है. इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है. भगवान विष्णु की आराधना की जाती है जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
🦚👉पिशाचमोचन श्राद्ध का विधान
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इस दिन व्रत, स्नान, दान, जप, होम और पितरों के लिए भोजन, वस्त्र आदि देना उतम रहता है. शास्त्रों के हिसाब से इस दिन प्रात:काल में स्नान करके संकल्प करें और उपवास करना चाहिए. कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशा कि ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थ आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए. तिलक, आचमन के उपरांत पीतल या ताँबे के बर्तन में पानी लेकर उसमें दूध, दही, घी, शहद, कुमकुम, अक्षत, तिल, कुश रखते हैं।
हाथ में शुद्ध जल लेकर संकल्प में उक्त व्यक्ति का नाम लिया जाता है जिसके लिए पिशाचमोचन श्राद्ध किया जा रहा होता है. फिर नाम लेते हुए जल को भूमि में छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार आगे कि विधि संपूर्ण कि जाती है. तर्पण करने के उपरांत शुद्ध जल लेकर सर्व प्रेतात्माओं की सदगति हेतु यह तर्पणकार्य भगवान को अर्पण करते हें व पितर की शांति की कामना करते हैं. पीपल के वृक्ष पर भी जलार्पण किया जाता है तथा भगवत कथा का श्रवण करते हुए शांति की कामना की जाती है।
🦚👉पितृ तर्पण विधि
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दोनों हाथ की तर्जनी अंगुली में नया पवित्री धारण कर मोटक नाम के कुशा के मूल और अग्रभाग को दक्षिण की ओर करके अंगूठे और तर्जनी के बीच में रखे, स्वयं दक्षिण की ओर मुँह करे, बायें घुटने को जमीन पर लगाकर अपसव्यभाव से (जनेऊ को दायें कंधेपर रखकर बाँये हाथ जे नीचे ले जायें ) पात्रस्थ जल में काला तिल मिलाकर पितृतीर्थ से (अंगुठा और तर्जनी के मध्यभाग से ) दिव्य पितरों के लिये निम्नाङ्कित मन्त्र-वाक्यों को पढते हुए तीन-तीन अञ्जलि जल दें।
ॐ कव्यवाडनलस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: — 3
ॐ सोमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: — 3
ॐ यमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: — 3
ॐ अर्यमा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: — 3
ॐ अग्निष्वात्ता: पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तेभ्य: स्वधा नम: — 3
ॐ सोमपा: पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तेभ्य: स्वधा नम: — 3
ॐ बर्हिषद: पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तेभ्य: स्वधा नम: — 3
🦚👉मनुष्य पितृ तर्पण विधि
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मनुस्मृति में लिखा है कि ऋषियों से पितर, पितरों से देवता और देवताओं से संपूर्ण स्थावर जंगम जगत की उत्पत्ति हुई है। ब्रह्मा के पूत्र मनु हुए। मनु के मरोचि, अग्नि आदि पुत्रों की पुत्रपरंपरा ही देवता, दानव, दैत्य और अंत में मनुष्य आदि के मूल पूरूष या पितर है।
निम्नाङ्कित मन्त्र से पितरों का आवाहन करें।
ॐ आगच्छन्तु मे पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’
ॐ हे पितरों! पधारिये तथा जलांजलि ग्रहण कीजिए।
‘हे अग्ने ! तुम्हारे यजन की कामना करते हुए हम तुम्हें स्थापित करते हैं । यजन की ही इच्छा रखते हुए तुम्हें प्रज्वलित करते हैं । हविष्य की इच्छा रखते हुए तुम भी तृप्ति की कामनावाले हमारे पितरों को हविष्य भोजन करने के लिये बुलाओ ।’
तदनन्तर अपने पितृगणों का नाम-गोत्र आदि उच्चारण करते हुए प्रत्येक के लिये पूर्वोक्त विधि से ही तीन-तीन अञ्जलि तिल-सहित जल इस प्रकार दें —
अस्मत्पिता अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यतांम् इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: — 3
अस्मत्पितामह: (दादा) अमुकशर्मा रुद्ररूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: — 3
अस्मत्प्रपितामह: (परदादा) अमुकशर्मा आदित्यरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: — 3
अस्मन्माता अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नम: — 3
अस्मत्पितामही (दादी) अमुकी देवी रुद्ररूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नम: — 3
अस्मत्प्रपितामही परदादी अमुकी देवी आदित्यरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जल तस्यै स्वधा नम: — 3
इसके बाद नौ बार पितृतीर्थ से जल छोड़े।
इसके बाद सव्य होकर पूर्वाभिमुख हो नीचे लिखे श्लोकों को पढते हुए जल गिरावे —
देवासुरास्तथा यक्षा नागा गन्धर्वराक्षसा: । पिशाचा गुह्यका: सिद्धा: कूष्माण्डास्तरव: खगा: ॥
जलेचरा भूमिचराः वाय्वाधाराश्च जन्तव: । प्रीतिमेते प्रयान्त्वाशु मद्दत्तेनाम्बुनाखिला: ॥
नरकेषु समस्तेपु यातनासु च ये स्थिता: । तेषामाप्ययनायैतद्दीयते सलिलं मया ॥
येऽबान्धवा बान्धवा वा येऽन्यजन्मनि बान्धवा: । ते सर्वे तृप्तिमायान्तु ये चास्मत्तोयकाङ्क्षिण: ॥
🦚👉अर्थ : ‘देवता, असुर , यक्ष, नाग, गन्धर्व, राक्षस, पिशाच, गुह्मक, सिद्ध, कूष्माण्ड, वृक्षवर्ग, पक्षी, जलचर जीव और वायु के आधार पर रहनेवाले जन्तु-ये सभी मेरे दिये हुए जल से भीघ्र तृप्त हों । जो समस्त नरकों तथा वहाँ की यातनाओं में पङेपडे दुरूख भोग रहे हैं, उनको पुष्ट तथा शान्त करने की इच्छा से मैं यह जल देता हूँ । जो मेरे बान्धव न रहे हों, जो इस जन्म में बान्धव रहे हों, अथवा किसी दूसरे जन्म में मेरे बान्धव रहे हों, वे सब तथा इनके अतिरिक्त भी जो मुम्कसे जल पाने की इच्छा रखते हों, वे भी मेरे दिये हुए जल से तृप्त हों ।’
ॐ आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवषिंपितृमानवा: । तृप्यन्तु पितर: सर्वे मातृमातामहादय: ॥
अतीतकुलकोटीनां सप्तद्वीपनिवासिनाम् । आ ब्रह्मभुवनाल्लोकादिदमस्तु तिलोदकम् ॥
येऽबान्धवा बान्धवा वा येऽन्यजन्मनि बान्धवा: ।ते सर्वे तृप्तिमायान्तु मया दत्तेन वारिणा ॥
🦚👉अर्थ : ‘ब्रह्माजी से लेकर कीटों तक जितने जीव हैं, वे तथा देवता, ऋषि, पितर, मनुष्य और माता, नाना आदि पितृगण-ये सभी तृप्त हों मेरे कुल की बीती हुई करोडों पीढियों में उत्पन्न हुए जो-जो पितर ब्रह्मलोकपर्यम्त सात द्वीपों के भीतर कहीं भी निवास करते हों, उनकी तृप्ति के लिये मेरा दिया हुआ यह तिलमिश्रित जल उन्हें प्राप्त हो जो मेरे बान्धव न रहे हों, जो इस जन्म में या किसी दूसरे जन्म में मेरे बान्धव रहे हों, वे सभी मेरे दिये हुए जल से तृप्त हो जायँ ।
वस्त्र-निष्पीडन करे तत्पश्चात् वस्त्र को चार आवृत्ति लपेटकर जल में डुबावे और बाहर ले आकर निम्नाङ्कित मन्त्र : “ये के चास्मत्कुले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृतारू । ते गृह्णन्तु मया दत्तं वस्त्रनिष्पीडनोदकम् ” को पढते हुए अपसव्य होकर अपने बाएँ भाग में भूमिपर उस वस्त्र को निचोड़े । पवित्रक को तर्पण किये हुए जल मे छोड दे । यदि घर में किसी मृत पुरुष का वार्षिक श्राद्ध आदि कर्म हो तो वस्त्र-निष्पीडन नहीं करना चाहिये ।
🦚👉अर्घ्य दान:
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फिर शुद्ध जल से आचमन करके प्राणायाम करे । तदनन्तर यज्ञोपवीत सव्य कर एक पात्र में शुद्ध जल भरकर उसमे श्वेत चन्दन, अक्षत, पुष्प तथा तुलसीदल छोड दे । फिर दूसरे पात्र में चन्दन् से षडदल-कमल बनाकर उसमें पूर्वादि दिशा के क्रम से ब्रह्मादि देवताओं का आवाहन-पूजन करे तथा पहले पात्र के जल से उन पूजित देवताओं के लिये अर्ध्य अर्पण करे ।
🦚👉अर्ध्यदान के मन्त्र निम्नाङ्कित हैं..
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ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमत: सुरुचो व्वेन ऽआव:। स बुध्न्या ऽउपमा ऽअस्य व्विष्ठा: सतश्च योनिमसतश्व व्विव:॥ ॐ ब्रह्मणे नम:। ब्रह्माणं पूजयामि ॥
ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्यपा, सुरे स्वाहा ॥ ॐ विष्णवे नम: । विष्णुं पूजयामि ॥
ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव ऽउतो त ऽइषवे नम: । वाहुब्यामुत ते नम: ॥ ॐ रुद्राय नम: । रुद्रं पूजयामि ॥
ॐ तत्सवितुर्व रेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो न: प्रचोदयात् ॥ ॐ सवित्रे नम: । सवितारं पूजयामि ॥
ॐ मित्रस्य चर्षणीधृतोऽवो देवस्य सानसि । द्युम्नं चित्रश्रवस्तमम् ॥ ॐ मित्राय नम:। मित्रं पूजयामि ॥
ॐ इमं मे व्वरूण श्रुधी हवमद्या च मृडय । त्वामवस्युराचके ॥ ॐ वरुणाय नम: । वरूणं पूजयामि ॥
🦚👉फिर भगवान सूर्य को अघ्र्य दें –
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एहि सूर्य सहस्त्राशों तेजो राशिं जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणाघ्र्य दिवाकरः।
हाथों को उपर कर उपस्थान मंत्र पढ़ें –
चित्रं देवाना मुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरूणस्याग्नेः। आप्राद्यावा पृथ्वी अन्तरिक्ष सूर्यआत्माजगतस्तस्थुशश्च।
फिर परिक्रमा करते हुए दशों दिशाओं को नमस्कार करें।
ॐ प्राच्यै इन्द्राय नमः। ॐ आग्नयै अग्नयै नमः। ॐ दक्षिणायै यमाय नमः। ॐ नैऋत्यै नैऋतये नमः। ॐ पश्चिमायै वरूणाय नमः। ॐ वायव्यै वायवे नमः। ॐ उदीच्यै कुवेराय नमः। ॐ ऐशान्यै ईशानाय नमः। ॐ ऊध्र्वायै ब्रह्मणै नमः। ॐ अवाच्यै अनन्ताय नमः।
इस तरह दिशाओं और देवताओं को नमस्कार कर बैठकर नीचे लिखे मन्त्र से पुनः देवतीर्थ से तर्पण करें।
ॐ ब्रह्मणै नमः। ॐ अग्नयै नमः। ॐ पृथिव्यै नमः। ॐ औषधिभ्यो नमः। ॐ वाचे नमः। ॐ वाचस्पतये नमः। ॐ महद्भ्यो नमः। ॐ विष्णवे नमः। ॐ अद्भ्यो नमः। ॐ अपांपतये नमः। ॐ वरूणाय नमः।
फिर तर्पण के जल को मुख पर लगायें और तीन बार ॐ अच्युताय नमः मंत्र का जप करें।
समर्पण- उपरोक्त समस्त तर्पण कर्म भगवान को समर्पित करें।
ॐ तत्सद् कृष्णार्पण मस्तु।
नोट- यदि नदी में तर्पण किया जाय तो दोनों हाथों को मिलाकर जल से भरकर गौ माता की सींग जितना ऊँचा उठाकर जल में ही अंजलि डाल दें। इस दिन पितरो के निमित्त त्रिपिंडी श्राद्ध (नारायनबलि) आदि कराने का भी विधान है इससे पितृगण मुक्त होकर श्रीचरणों में स्थान पाते है और परिवार को श्रीसमृद्धि का आशीष प्रदान करते है।
🦚👉पिशाच मोचन कुंड:
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🦚👉वाराणसी में इस पेड़ पर सिक्का क्यों चिपकाते हैं लोग, अतृप्त आत्माओं से क्या है संबंध?
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पिशाचमोचन कुंड पर कर्मकांड के अजीबो गरीब विधान श्रद्धालुओं के लिए आश्चर्य से कम नहीं हैं। पिशाचमोचन कुंड का पीपल पेड़ मान्यता का साक्षी है। पेड़ में ठोंके गए असंख्य सिक्के और कील किसी न किसी अतृप्त आत्मा का ठिकाना है।
देश का इकलौता शहर जहां अकाल मृत्यु और अतृप्त आत्माओं की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध होता है। पीपल के पेड़ पर सिक्का रखकर पितरों का उधार चुकाया जाता है। पिशाचमोचन कुंड के पीपल के पेड़ से भी कई मान्यताएं जुड़ी हैं। पूर्णिमा के श्राद्ध के साथ ही 29 सितंबर से पितरों के श्राद्ध का पक्ष आरंभ हो जाएगा। पितृ पक्ष पर तर्पण के लिए आने वालों का सिलसिला शुरू हो चुका है।
पिशाचमोचन कुंड पर कर्मकांड के अजीबो गरीब विधान श्रद्धालुओं के लिए आश्चर्य से कम नहीं हैं। पिशाचमोचन कुंड का पीपल पेड़ मान्यता का साक्षी है। पेड़ में ठोंके गए असंख्य सिक्के और कील किसी न किसी अतृप्त आत्मा का ठिकाना है। पीपल के पेड़ पर मृत व्यक्ति की तस्वीर और उनके किसी न किसी प्रतीक चिह्न को भी लगाया जाता है। अकाल मृत्यु से मरने वालों के लिए पिशाचमोचन पर ही मुक्ति का द्वार खुलता है। यहां देश-विदेश से लोग अपने पितरों का तर्पण करने के लिए आते हैं, ताकि पितर सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें और यजमान भी पितृ ऋण से मुक्त हो सकें।
तीर्थ पुरोहित दीपक पांडेय ने बताया कि पेड़ में सिक्के या कील गाड़ने का विधान 12 महीने का होता है, लेकिन पितृ पक्ष के 15 दिन बेहद खास माने जाते हैं। ये पक्ष पितृ लोक में रहने वाले पितरों और प्रेत योनियों में भटकती आत्माओं का मुक्ति द्वार माना गया है। गया में पितरों का श्राद्ध होता है। लेकिन, पिशाचमोचन में पितरों के अलावा घात प्रतिघात और अकाल मृत्यु में मारे गए ज्ञात अज्ञात आत्माओं के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध होता है। इस पक्ष में किया गया श्राद्ध आत्माओं को मोक्ष दिलाता है।
🦚👉गरुण पुराण में भी है पिशाचमोचन का वर्णन:-
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गरुड़ पुराण में भी पिशाचमोचन कुंड का वर्णन मिलता है। काशी खंड के अनुसार पिशाच मोचन तीर्थ स्थल गंगा के धरती पर आने से पहले स्थित था। कुंड के किनारे बैठकर अकाल मृत्यु के शिकार हुए पितर के लिए श्राद्ध कर्म करने से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। तीर्थ पुरोहित अजय पांडेय ने बताया कि ये कुंड अनादि काल से पिशाचमोचन में स्थित है तब इसे विमलोदक सरोवर के नाम से जाना जाता था। पुष्कर के रहने वाले ब्राह्मण की अकाल मौत हो गई और वह पिशाच योनि में भटकते हुए विमलोदक सरोवर तक पहुंच गए। सरोवर में डुबकी लगाते ही ब्राह्मण को पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई।
🦚👉पिशाचमोचन पर ही अश्वदान की परंपरा:-
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काशी विद्वत कर्मकांड परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य अशोक द्विवेदी का कहना है कि काशी को प्रथम पिंड कहते हैं। इसलिए सबसे पहले लोग काशी में पिशाचमोचन कुंड पर आकर पिंडदान करते हैं। उसके बाद गया और फिर अंत में केदारनाथ जाते हैं। पिशाचमोचन तीर्थ पर अश्वदान करने की परंपरा है जो ना तो प्रयागराज में होती है और ना ही गया में। अश्वदान के बाद ही यजमान प्रेत कुंड में पिंड डालने का अधिकारी होता है।
🦚👉तामसिक भोजन से रहें दूर:-
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पितरों की प्रसन्नता के लिए 15 दिन तक बाल और दाढ़ी नहीं कटवाना चाहिए। इससे धन की हानि होती है। श्राद्ध पक्ष में तामसिक भोजन से पूरी तरह परहेज रखना चाहिए और सात्विक भोजन करें। ब्रह्म पुराण के अनुसार पितृपक्ष में पंचबलि करने से पितृदोष का निवारण होता है। पंचबलि के लिए सबसे पहला ग्रास (भोजन) गाय, दूसरा ग्रास कुत्ता, तीसरा ग्रास कौआ के लिए निकाला जाता है। इसके बाद चौथा ग्रास देव बलि होता है, जिसे जल में प्रवाहित किया जाता है अथवा गाय को देते हैं। पांचवा ग्रास चीटियों के लिए रखना चाहिए।
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Akshay Jamdagni Expert in Solution by Astro, Vastu
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Written by Akshay Jamdagni Expert in Solution by Astro, Vastu

Consultant Astrologer and Vaastu expert: Akshay Jamdagni, Years of experience in Jyotish, Vastu & Numerology, etc

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